धर्म और अधर्म क्या हैं?

🔹 परिचय

मनुष्य के जीवन में धर्म और अधर्म का गहरा संबंध है। धर्म वह शक्ति है जो जीवन को सच्चाई और शांति की दिशा देती है, जबकि अधर्म वह मार्ग है जो व्यक्ति को अंधकार और विनाश की ओर ले जाता है।
धर्म और अधर्म को समझना इसलिए आवश्यक है ताकि हम अपने कर्मों और विचारों को सही दिशा में रख सकें।




🔹 धर्म का अर्थ

“धर्म” शब्द संस्कृत की धातु ‘धृ’ से बना है, जिसका अर्थ है — धारण करना।
अर्थात्, जो इस सृष्टि को धारण और संयमित रखे वही धर्म है।
धर्म केवल पूजा-पाठ या धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि सत्य, अहिंसा, करुणा, दया, और कर्तव्य जैसे गुणों का पालन है।

👉 संक्षेप में:
धर्म वह आचरण है जो सत्य और कल्याण की ओर ले जाए।




🔹 अधर्म का अर्थ

“अधर्म” वह है जो सत्य, न्याय और सदाचार के विरुद्ध हो।
जब व्यक्ति क्रोध, लोभ, घृणा या अहंकार में आकर गलत कार्य करता है, तो वह अधर्म कहलाता है।
अधर्म का परिणाम सदैव दुःख, भय और पतन के रूप में सामने आता है।




🔹 धर्म और अधर्म के बीच अंतर

पहलू धर्म अधर्म

आधार सत्य, न्याय, करुणा, झूठ, अन्याय, हिंसा
उद्देश्य समाज और आत्मा का कल्याण स्वार्थ और अहंकार की पूर्ति
परिणाम सुख, शांति, मोक्ष दुख, अशांति, पतन
उदाहरण सत्य बोलना, सेवा करना छल करना, अन्याय करना





🔹 वर्तमान समय में धर्म का महत्व

आज धर्म का अर्थ केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है। सच्चा धर्म वही है जो मानवता, सत्य और कर्तव्य का पालन सिखाए। धर्म का पालन करने वाला व्यक्ति समाज में शांति, प्रेम और सद्भाव का वातावरण बनाता है।

> धर्म वही है जो सबके कल्याण में सहायक हो।






🔹 उपसंहार

धर्म और अधर्म के बीच की रेखा बहुत सूक्ष्म होती है।
धर्म वह है जो सत्य, प्रेम और करुणा की ओर ले जाए, जबकि अधर्म वह जो स्वार्थ और अन्याय की दिशा में बढ़ाए।
इसलिए, प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचारों और कर्मों का मूल्यांकन करते हुए सदैव धर्म के मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए।

कल्कि साधना केंद्र —

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