जानिए धर्म क्या है?

🌼 जानिए धर्म क्या होता है?



धर्म — यह शब्द हर युग में मानव जीवन के केंद्र में रहा है। परंतु समय के साथ इसका अर्थ सीमित होता चला गया। आज बहुत लोग धर्म को केवल पूजा-पाठ, रीति-रिवाज या किसी विशेष संप्रदाय से जोड़ देते हैं।
जबकि धर्म का वास्तविक अर्थ इससे कहीं गहरा और व्यापक है।

धर्म वह शक्ति है जो व्यक्ति, समाज और संसार — तीनों को संभालती है, जोड़ती है और सही दिशा देती है।

🔹 विषय-विस्तार

संस्कृत में “धर्म” शब्द “धृ” धातु से बना है, जिसका अर्थ है — धारण करना, स्थिर रखना या सँभालना।
अर्थात जो इस सृष्टि को स्थिर रखे, संतुलित रखे, वही धर्म है।

जैसे —

अग्नि का धर्म है जलाना,

सूर्य का धर्म है प्रकाश देना,

और जल का धर्म है शीतलता प्रदान करना।


उसी प्रकार मनुष्य का धर्म है — सत्य, करुणा, न्याय और कर्तव्य का पालन करना।

धर्म का संबंध केवल बाहरी कर्मकांडों से नहीं बल्कि आचरण और विचारों की शुद्धता से है।
सच्चा धर्म वह है जो हमें स्वयं के भीतर शांति और दूसरों के प्रति करुणा सिखाए।




🔹 विश्लेषण / विवेचन

यदि धर्म केवल पूजा या मत तक सीमित होता, तो संसार में इतने मत-भेद क्यों होते?
वास्तविकता यह है कि धर्म एक आचार है, न कि केवल आस्था।
यह वह नियम है जो जीवन को संतुलन में रखता है।

भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है —

> “स्वधर्मे निधनं श्रेयः, परधर्मो भयावहः।”
अर्थात — अपने धर्म का पालन करना श्रेष्ठ है, चाहे उसमें मृत्यु ही क्यों न हो; दूसरे के धर्म का अनुसरण करना भय उत्पन्न करता है।



इससे स्पष्ट होता है कि धर्म व्यक्ति की कर्तव्यनिष्ठा और सत्यनिष्ठा में निहित है।
जब व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करता है, जब वह दूसरों के हित में सोचता है — तभी वह धर्माचरण करता है।

धर्म का एक और रूप है मानवता।
यदि किसी का आचरण दूसरों के प्रति दया, सम्मान और सत्य पर आधारित है, तो वही सच्चा धर्म है।
वेदों में भी कहा गया है —

> “धर्मो विश्वस्य जगतः प्रतिष्ठा।”
अर्थात — धर्म ही इस संसार की स्थिरता का आधार है।


🔹 निष्कर्ष

अतः धर्म कोई संप्रदाय नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है।
यह हमें बताता है कि कैसे हम अपने विचारों, वचनों और कर्मों को संतुलित रखें।
धर्म हमें बाहरी आडंबरों से हटाकर भीतरी जागृति और आत्मबोध की ओर ले जाता है।

सच्चा धर्म वही है —

> जो स्वयं को और संसार को बेहतर बनाता है,
जो प्रेम, सत्य और कर्तव्य पर आधारित होता है।



जब मनुष्य धर्म को समझ लेता है, तब उसका जीवन केवल भौतिक नहीं, आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बन जाता है।
इसलिए कहा गया है —

> “धर्म ही जीवन का मूल है, और अधर्म उसका पतन।”

Leave a Comment